जानिए RSS के स्कूल संगठन 'विद्या भारती' की पूरी कहानी

जानिए RSS के स्कूल संगठन 'विद्या भारती' की पूरी कहानी
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पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े सवा सौ स्कूलों को बंद करने का फरमान जारी किया तो सियासी विवाद शुरू हो गया. आरएसएस से जुड़े स्कूलों के संगठन विद्या भारती ने इस आदेश के खिलाफ कोर्ट का सहारा लिया है. आईए जानते हैं कि आखिर संघ के स्कूलों का कितना बड़ा नेटवर्क है और इसमें कितने विद्यार्थी पढ़ते हैं.

जिन स्कूलों को बंद करने का नोटिस मिला है वे स्कूल शारदा शिशु तीर्थ, सरस्वती शिशु मंदिर, और विवेकानंद विद्या विकास परिषद द्वारा संचालित किए जा रहे हैं. ये सब अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान विद्या भारती से जुड़े हैं. इसका मुख्यालय लखनऊ में है. संस्था का जो मकसद है उनमें सबसे अहम है हिंदुत्व के लिए समर्पण और देशभक्ति का जोश पैदा करना. संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि बस इसी हिंदुत्व पर कुछ लोगों को पेट में दर्द हो जाता है.

लक्षद्वीप और मिजोरम को छोड़कर पूरे देश में 86 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियां विद्या भारती से जुड़ी हैं. शहर से लेकर गांव तक, वनवासी और पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर झुग्गी-झोंपड़ियों तक में शिशु वाटिकाएं, सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, सरस्वती विद्यालय, उच्चतर शिक्षा संस्थान, शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र और शोध संस्थान हैं. इनमें 1.46 लाख शिक्षक और 34.5 लाख से अधिक विद्याथी हैं. जैसे-जैसे इनकी संख्या बढ़ रही है, संघ का हिंदू समाज में संपर्क बढ़ रहा है, जिससे उसका कुनबा बढ़ रहा है. जिसके कई तरह के लाभ हैं.

विद्या भारती की केंद्रीय कार्यसमिति में मंत्री शिव कुमार ने कहा, "ममता बनर्जी सरकार ने हमारे स्कूलों को नोटिस देकर कहा था कि हम लोग बच्चों को लाठी चलाना सिखाते हैं जो हिंसात्मक है. एक मसला धार्मिक शिक्षा से संबधित था और एक आपत्ति आरटीई (राइट टू एजुकेशन) को लेकर. हम लोग सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट गए, वहां से राहत मिली है. केंद्र सरकार ने पहले ही आरटीई को 2020 तक लागू करने का समय दिया है."

आरएसएस में दिल्ली प्रांत के प्रचार प्रमुख राजीव तुली  कहते हैं, "हमारे स्कूलों में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्ररक्षा का पाढ़ पढ़ाया जाता है. बच्चे संस्कारवान बनाए जाते हैं, इसमें कुछ लोग राजनीति खोजते हैं."

आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा कहते हैं, "आरएसएस के जिन स्कूलों को बंद करने के लिए ममता बनर्जी सरकार ने नोटिस दिया है उनमें 90 हजार छात्र पढ़ते हैं. करीब चार हजार शिक्षक कार्यरत हैं. इनमें पढ़ने वाले 80 फीसदी बच्चे दलित और ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं. 10 फीसदी मुस्लिम छात्र हैं. ममता बनर्जी समाज को पूर्ण रूप से राजनीतिक और मानसिक ध्रुवीकरण करने की साजिश है."

सिन्हा कहते हैं "एनआईए द्वारा जिन मदरसों को बंद करने की सिफारिश की गई उसे सरकार खुली छूट दे रही है. जबकि जो सरकारी पाठ्यक्रमों के हिसाब से शिक्षा दे रहे हैं उन्हें बंद करवाने की कोशिश हो रही है. एक समय लॉर्ड कर्जन ने 1905 में इसी तरह का काम करके बंगाल को विभाजित किया था, ममता बनर्जी की नीतियां इसी दिशा की तरफ इशारा कर रही हैं."

इतिहास: 1952 में खुला पहला स्कूल, संस्था बनी 1977 में

आरएसए नेता कृष्ण चंद्र गांधी ने भाउराव देवरस और नाना जी देशमुख के साथ मिलकर 1 जुलाई 1952 को गोरखपुर के पक्की बाग में देश के पहले 'सरस्वती शिशु मंदिर' की आधारशिला रखी थी. यह उनके प्रयोगवादी कार्यों का ही एक उदाहरण था. आज यह स्कूलों की बड़ी चेन बन चुका है. इसके लिए पांच रुपये मासिक किराया दिया जाने लगा. इससे पहले 1946 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में गीता विद्यालय की स्थापना हो चुकी थी. जिसकी स्थापना संघ प्रमुख एम.एस. गोलवलकर ने की थी.

यूपी में धीरे-धीरे और स्कूल खुलते गए. इन स्कूलों को चलाने के लिए 1958 में शिशु शिक्षा प्रबंध समिति का गठन हुआ. जब अन्य प्रदेशों में भी ऐसे स्कूल खुले तो उनमें भी समितियों का गठन हुआ. पंजाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समिति और हरियाणा में हिंदू शिक्षा समिति बनी. फिर इसे राष्ट्रीय स्वरूप देते हुए 1977 में विद्या भारती संस्था का गठन किया गया.