दे रहा है इतिहास गवाही,
जो कल था मैं ओ आज नहीं,
ईट ईट करके जिस बागवान ने मुझ को जोड़ा है,
लाखों आरोप प्रत्यारोप उसने झेला है,
मेरी यह बदली तस्वीर उनके कर्मों का नतीजा है ,
क्यारी क्यारी मेरी जिसने अपने श्रम से सींचा है
उनकी खून पसीने की खुशबू मेरे कोने-कोने से आती है, जिसकी कला और हुनर मेरे जीवन की थाती है ,
मेरा बागवान कोई एक नहीं हजारों हस्ती है,
सब के त्याग और तप की गाथाएं ,
मेरे दीवारों पर दिखती है,
दिल से मैं ऋणी हूं हर उस बागवान का,
जिसने अपना कीमती समय मुझको दान दिया,
सिर उठाकर लोग मुझे देखें ,
अपने हुनर से इतना बड़ा किया........